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Home धर्म कर्म

पारिजात या हरसिंगार के पौधे की धार्मिक व औषधीय महत्ता

by Lucknow Tutorial Team
May 30, 2023
in धर्म कर्म
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पारिजात या हरसिंगार के पौधे की धार्मिक व औषधीय महत्ता
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हिंदू धर्म में पारिजात के वृक्ष को अत्यधिक पवित्र माना जाता हैं। यह माता लक्ष्मी का अत्यधिक प्रिय पौधा हैं तथा इनके फल-फूल भगवान विष्णु के श्रृंगार के रूप में प्रयोग में लिए जाते हैं। इसलिये इसका एक नाम हरसिंगार भी हैं। इससे जुड़ी कई प्राचीन कथाएं हैं जिनका संबंध सतयुग से लेकर द्वापर युग तक रहा हैं । आइए इस वृक्ष की महत्ता तथा विशेषता के बारे में जानते हैं।

पारिजात के वृक्ष के बारे में संपूर्ण जानकारी
यह वृक्ष लंबाई में दस से पच्चीस फीट के आसपास होता हैं। कई जगह इसकी उंचाई पच्चीस फीट से भी ज्यादा हो जाती हैं । इस वृक्ष की विशेषता यह हैं कि यह संपूर्ण भारतवर्ष में उगता हैं तथा मुख्यतया इसे उद्यान आदि में देखा जाता हैं।

इसमें कई सुगंधित पुष्प लगते हैं जो भगवान की पूजा में उपयोग में आते हैं। इसकी एक ओर विशेषता यह हैं कि एक दिन में इसमें इतने सारे पुष्प उगते है कि पूछिए मत । साथ ही चाहे इससे सभी पुष्प तोड़ लो, अगले दिन वहां और पुष्प लगे मिलेंगे।

पारिजात वृक्ष के अन्य नाम
इस वृक्ष के कई अन्य नाम भी प्रचलन में हैं जैसे कि पारिजातक, हरसिंगार, शेफाली, विष्णुकांता, शेफालिका, रात की रानी, प्राजक्ता, शिउली आदि। यह नाम इस वृक्ष के गुणों तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं पर आधारित हैं। अंग्रेजी में इसका नाम नाईट जैस्मिन व उर्दू में गुलजाफरी हैं।

पारिजात के पौधे को रात की रानी या नाईट जैस्मिन क्यों कहते हैं?
आप सोच रहे होंगे कि ऐसी इसमें क्या विशेषता हैं कि इसे रात की रानी कहा जाता हैं। दरअसल इसमें जो भी पुष्प लगते हैं वह केवल रात्रि में ही लगते हैं तथा प्रातःकाल मुरझाकर गिर जाते हैं। फिर अगली रात्रि को इसमें नए पुष्प लगते हैं। इसी विशेषता के कारण इसे रात की रानी या नाईट जैस्मिन के नाम से जाना जाता हैं।

इसके साथ ही भगवान की पूजा के लिए इस वृक्ष से पुष्प तोड़ना निषेध हैं अर्थात जो पुष्प अपने आप टूटकर गिर गए हैं केवल उन्ही से ही हरि की पूजा हो सकती हैं, स्वयं तोड़े गए पुष्पों से नही।

पारिजात के वृक्ष का धार्मिक महत्व
पारिजात के वृक्ष का समुंद्र मंथन में निकलना
इस वृक्ष की उत्पत्ति सतयुग में देवताओं व दानवों के द्वारा किये गए समुंद्र मंथन से हुई थी। समुंद्र मंथन में कुल 14 रत्न निकले थे जिनमे से एक पारिजात का वृक्ष भी था। भगवान विष्णु के आदेश पर यह देव इंद्र को प्राप्त हुआ था जिसे स्वर्ग लोक में लगाया गया था।

अप्सरा उर्वशी ही छू सकती थी इसे
ऐसी भी मान्यता हैं कि देवलोक में केवल अप्सरा उर्वशी ही इसे छू सकती थी। नृत्य आदि करके जब वे थकान में होती थी तब इसे छूकर उनकी सारी थकान मिट जाया करती थी।

देवी लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय
माता लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प अत्यधिक प्रिय हैं। इसलिये उनकी पूजा में इसके पुष्प आवश्यक रूप से सम्मिलित किये जाते हैं।

कुंती ने की शिवपूजा
यह कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई हैं। मान्यता हैं कि जब पांडव अपनी माता कुंती के साथ अज्ञातवास में थे तब कुंती ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए पारिजात के पुष्प की मांग की थी। तब अर्जुन ने स्वर्ग लोक जाकर अपने धर्म पिता इंद्र से पारिजात के पुष्प प्राप्त किये थे। तब जाकर कुंती ने भगवान शिव की आराधना की थी।

पारिजात के वृक्ष का औषधीय महत्व
धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ इसका औषधीय महत्व भी हैं जो हमारे शरीर से कई रोगों का निदान करता हैं । आइये जानते हैं:

प्रतिदिन इसके एक बीज का नित्य सेवन करने से बवासीर नामक बीमारी ठीक हो जाती है ।
इसकी सुगंध इतनी अच्छी हैं कि यह हमारी थकान तो मिटाती ही है साथ ही तनाव को भी दूर करती है।
इसके पुष्पों के रस का सेवन करने से हृदय रोगियों को लाभ मिलता हैं किंतु यह आयुर्वेदिक वैद्य से पूछकर ही करे।
सूखी खांसी होने पर इसकी पत्तियों को पीस ले व उसे शहद के साथ मिलाकर खा ले। इससे आपकी सूखी खांसी ठीक हो जाएगी।
त्वचा संबंधी रोगों में भी पारिजात की पत्तियां किसी चमत्कार की तरह कार्य करती हैं।
इसके अलावा पारिजात का वृक्ष कई आयुर्वेदिक औषधियों में मुख्य रूप से काम में लिया जाता हैं। इससे कई सामान्य तथा गंभीर बिमारियों का उपचार संभव हैं।

बाराबंकी में हैं द्वापर युग का पारिजात वृक्ष
उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी जिले के बोरोलिया गाँव में एक पारिजात का वृक्ष हैं जो द्वापर युग के समय महाभारत काल का माना जाता हैं। चूँकि पारिजात वृक्ष की आयु एक हज़ार से लेकर पांच हज़ार वर्ष तक होती हैं इसलिये ऐसा होना संभव हैं।

यह वृक्ष 45 फीट ऊँचा हैं जिसकी लंबी-लंबी शाखाएं हैं। वर्ष में केवल एक बार जून माह के आसपास इस पर श्वेत तथा पीले रंग के पुष्प लगते हैं जो अपने चारो ओर के वातावरण को सुगंधित कर देते हैं।

Anupama Dubey

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