AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के ‘भारत में मुसलमान बंधक की तरह जी रहे हैं’ पर दिए गए बयान को लेकर देशभर में राजनीतिक और धार्मिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। विशेष रूप से काशी के संतों में इस बयान को लेकर गहरी नाराजगी देखी जा रही है।
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) के बयान को “देशविरोधी मानसिकता” का परिचायक बताते हुए कहा कि अगर उन्हें भारत में स्वतंत्रता महसूस नहीं होती तो वे उन देशों में चले जाएं जहां उन्हें यह महसूस हो।
स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि जब इस्लामी देशों में समस्याएं आती हैं, तो मुसलमान गैर-इस्लामिक देशों में ही क्यों भागते हैं? ओवैसी पढ़े-लिखे हैं, उन्हें इस पर विचार करना चाहिए। भारत में संविधान का शासन है, यह सरिया का देश नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में मुसलमान अपने पर्व मनाते हैं, यहां धार्मिक स्वतंत्रता है। लेकिन त्योहारों के नाम पर कानून व्यवस्था को चुनौती देना उचित नहीं है।
AIMIM: जानिए क्या है पूरा मामला?
विवाद की शुरुआत केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरण रिजिजू के एक सोशल मीडिया पोस्ट से हुई, जिसमें उन्होंने लिखा था कि “भारत एकमात्र देश है जहां अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से अधिक सुविधाएं और सुरक्षा मिलती है।” इसके जवाब में असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भारत के अल्पसंख्यक अब दूसरे दर्जे के नागरिक भी नहीं रहे, हम बंधक हैं। हमें हर दिन पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, जिहादी या रोहिंग्या कहा जाता है। यह कौन-सी सुविधा है? ओवैसी ने रिजिजू को संबोधित करते हुए लिखा कि आप कोई सम्राट नहीं हैं, बल्कि संविधान के अधीन मंत्री हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकार खैरात नहीं, उनके मौलिक अधिकार हैं।
इस पर रिजिजू ने फिर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि अगर भारत में अल्पसंख्यक बंधक हैं, तो पड़ोसी देशों से अल्पसंख्यक भारत आना क्यों पसंद करते हैं? और हमारे अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते? प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं सभी के लिए हैं और अल्पसंख्यक मामलों की योजनाओं का लाभ भी सबसे अधिक इन्हीं को मिलता है।