- बिहार के बेटे लालू यादव को चुनावी मैदान में दी थी पटखनी
- नीतीश कुमार को सीएम बनाने में निभाई थी अहम भूमिका
वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव का निधन हो गया। उन्होंने गुरुग्राम के एक अस्पताल में गुरुवार देर शाम आखिरी सांस ली। शरद यादव भले ही मध्य प्रदेश में जन्में हों, लेकिन उनकी जुड़ाव हमेशा से बिहार से ही रहा है। उन्होंने बिहार की सियासत में अंगद की तरह अपने पांव जमा लिए थे। उन्हें बिहार की राजनीति का ‘भीष्म पितामह’ भी कहा जाता था। ये शरद यादव की स्वीकार्यता ही थी कि मध्य प्रदेश का होते हुए भी उन्होंने बिहार में जब लालू की लोकप्रियता शिखर पर थी, उन्हें सियासी पटखनी दे दी थी।
वर्ष 1999 का वह दौर, जिस समय जनता दल दो खेमों में बंट गया था। एक गुट (जनता दल सेक्युलर) की अगुवाई एचडी देवगौड़ा कर रहे थे। तो वहीं दूसरे गुट (जनता दल यूनाइटेड) की कमान शरद यादव ने अपने हाथों में ले ली थी। उनके नेतृत्व में बिहार में लोकसभा का पहला चुना था।
शरद यादव ने बिहार के मधेपुरा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। उनके सामने उनके अजीज साथी और बिहार की राजनीति में शीर्ष तक पहुंचे लोकप्रिय नेता लालू यादव थे। शरद यादव के राजनीतिक कौशल और चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया।
एमपी के लडके ने बिहार के कद्दावर नेता को चुनावी मैदान में पटखनी दे दी थी। इसके बाद शरद यादव मधेपुरा सीट से चार बार सांसद रहे। जिससे उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया।

जिस सीट से जीते, उसी सीट से हारे
जिस मधेपुरा सीट से शरद ने बिहार के बेटे लालू यादव को पटखनी दी, उसी सीट से एक समय शरद को हार का मुंह भी देखना पड़ा था। जबकि उनके सामने राजद के पप्पू यादव जैसे नवसिखिये नेता थे। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर के समय में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में शरद यादव मधेपुरा सीट से मैदान में थे।
उनके सामने राजद से युवा चेहरा पप्पू यादव थे। इस चुनाव में पप्पू यादव ने उन्हें पटखनी दे दी थी। शारद यादव ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव राजद के टिकट से लड़ा। लेकिन इस बार भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार उनके प्रतिद्वंदी के रूप में जदयू के नेता दिनेश चंद्र यादव थे।
सियासत की नई पौध की थी तैयार
शरद यादव को बिहार ने बड़ा प्यार और सम्मान दिया। बिहारियों ने उन्हें अपने दिल में बसा लिया था। वैसे बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां की जनता नेताओं को बड़ा सम्मान देती है। चाहे वे लालू, नीतीश हों या शरद यादव या फिर कोई अन्य नेता। बिहार में सियासत की नई पौध तैयार करने में शरद यादव की बड़ी भूमिका रही। उनके साथ सियासत में कदम मिलाकर चलने वाले शिवानन्द तिवारी के अनुसार, लालू को मुख्यमंत्री बनाने में शरद यादव की अहम भूमिका रही थी।
वर्ष था 1990 का। जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर चुकी थी। बिहार में भी नई सरकार का गठन होना था। ऐसे में रामसुंदर दास सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहे थे। रघुनाथ झा भी इस मैदान में थे। ऐसे में केंद्रीय टीम में शामिल शरद यादव ने लालू यादव के नाम पर सहमती जुटाई और लालू बिहार के मुख्यमंत्री बने।
1991 में बिहार वापसी
वर्ष 1991 में जनता दल में मुख्य भूमिका निभा रहे शरद यादव यूपी में पार्टी के लिए काम कर रहे थे। इस वर्ष उन्हें पार्टी के ओर से बिहार भेजा गया। उन्होंने एक बार फिर से मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ा। इसके बाद उन्होंने बिहार में अंगद की तरह अपने पांव जमा लिए। इसके बाद वे कभी बिहार से अन्यत्र कहीं नहीं गए।
समय बीता, 2005 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के संयोजक के रूप में शरद यादव ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गठबंधन से लेकर सीटों के बंटवारे तक और चुनावी कूटनीति से एनडीए को जीत दिलाने में शरद यादव की भूमिका अहम रही। इसी जीत के बाद नीतीश कुमार के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा।

अलग हो गए नीतीश और शरद
2005 में नीतीश की पार्टी सत्ता में आई और 10 वर्ष पश्चात् 2015 आते-आते नीतीश कुमार और शरद यादव में दूरियां बढ़ने लगीं। धीरे-धीरे जदयू और नीतीश से शरद की दूरियां बढ़ने लगीं। बताया जाता है कि जदयू को खड़ा करने में शरद यादव का बड़ा हाथ था।
2018 में शरद ने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। 2019 में उन्होंने फिर से राजद से मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन फिर वे हार गए। इसके बाद वे लगातार बीमार रहने लगे।
शारद आखिरी बार 21 सितम्बर 2022 में बिहार आए थे। इस बार वे लगभग 3 साल बाद पटना आए थे। यहां उन्होंने तेजस्वी यादव व अन्य नेताओं से मुलाकात की थी। तब उन्होंने कहा था कि कार्यकर्ताओं का आग्रह और प्रेम उन्हें बिहार खींच लाया। इस दौरान उनके बेटे शांतनु यादव भी उनके साथ थे। हालांकि वे किसी पार्टी के दफ्तर नहीं गए थे। एक होटल में ही रुके और यहीं से लौट गए।