- पुष्कर से आये साधुओं की टोली करती थी लीला
- प्रहलादघाट गंगा तट पर होगी पांच दिवसीय नृसिंह लीला
- अभीष्ट प्राप्ति व शत्रु शमन के लिए होती है भगवान नृसिंह की पूजा
- पूजा-अर्चना से होता है समस्त बाधाओं का शमन
राधेश्याम कमल
वाराणसी। काशी में गंगा तट पर सिर्फ दो ही लीलाएं होती है। इनमें पहला तुलसीघाट का प्रसिद्ध नागनथैया की लीला होती है जिसमें लाखों की भीड़ जुटती है। दूसरी गंगा तट पर होने वाली प्रहलादघाट की प्रसिद्ध नृसिंह लीला है। इस लीला को भी देखने के लिए हजारों की भीड़ घाट पर उमड़ती है। घाट पर यह लीला पांच दिनों तक चलती है। यह लीला एक मई 2023 से शुरू होने जा रही है। इसमें पहले दिन एक मई को क्षीरसागर की झांकी व जय-विजय को श्राप, व हिरण्यकश्यप व हिरणाक्षय का जन्म, दो मई को भगवान वाराह का अवतार, हिरणाक्षय का वध, भक्त प्रहलाद का जन्म, 3 मई को भक्त प्रहलाद को शिक्षा व हिरण्यकश्यप द्वारा अनेक दंड, 4 मई को भगवान नृसिंह का अवतार व हिरण्यकश्यप का वध की लीला होगी। हिरण्यकश्यप वध व नृसिंह भगवान का अवतार की लीला में घाट पर रंगीन कागजों से विशाल खम्भा बनाया जाता है। निर्धारित समय में नृसिंह भगवान उस खम्भे को फाड़ कर प्रगट होकर हिरण्कश्यप का वध कर भक्त प्रहलाद की रक्षा करते हैं।
इस दौरान घाट पर भारी जयघोष भी होता है। घाट की सीढ़ियों के अलावा नावों व बजड़ों पर बैठ कर लोग इस लीला का अवलोकन करते हैं। प्रहलादघाट पर होने वाली नृसिंह लीला का इतिहास काफी प्राचीन है। लीला की संवाद की कापी में इस लीला के संवंत 1045 में संकलित करने का उल्लेख है। कुछ लोग इस लीला को तीन सौ साल पुराना मानते हैं। बुर्जुगों की मानें, तो पुष्कर से आये साधुओं की टोली प्रहलादघाट पर एक माह तक ठहर कर नृसिंह लीला का आयोजन करती थे। इसके बाद वे पुष्कर लौट जाते थे। यह सिलसिला काफी वर्षों तक चला। बाद में यहां के काफी लोगों ने इस लीला को अपने नेतृत्व में करना शुरू किया। पहले इस लीला से स्व. पं. कृपाराम उपाध्याय, लल्लन सिन्हा, कृष्णचन्द्र शुक्ल, देवनारायण पांडेय जुड़े रहे। स्व. पं. कृपाराम उपाध्याय कई वर्षों तक नृसिंह भगवान बनते रहे। प्रहलादघाट पर नृसिंह भगवान का भव्य मंदिर भी है जिसमें उनकी विशाल मूर्ति है। इस मंदिर के पुजारी पं. रमेश तिवारी हैं। यह मंदिर अपने आप में अनूठा है।
नृसिंह लीला समिति के अध्यक्ष मोहित उपाध्याय ने बताया कि इस बार भी लीला को लेकर भव्य आयोजन किया जा रहा है। इस बार राजकुमार त्रिपाठी (नृसिंह भगवान), अनुराग पांडेय (प्रहलाद), प्रदीप साहनी (हिरण्यकश्यप) बनेंगे। समिति में बद््री शर्मा व अजय मिश्र (उपाध्यक्ष), राजकिशोर पांडेय (कोषाध्यक्ष), राजेश विश्वकर्मा, अभिजीत भारद्वाज (महामंत्री) राजकुमार त्रिपाठी (व्यास) हैं।
भगवान श्रीनृसिंह का चार को मनाया जायेगा प्राकट्योत्सव
भारतीय संस्कृति के हिंदू सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करके व्रत-उपवास रखने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान श्रीनृसिंह का प्राकट्य महोत्सव मनाने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। प्रख्यात ज्योतिशीविद् पं. विमल जैन के मुताबिक इस बार भगवान नृसिंह जयंती 4 मई गुरुवार को मनायी जायेगी। वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 3 मई बुधवार को अर्धरात्रि में 11.50 मिनट पर लगेगी जो कि 4 मई गुरुवार की रात्रि 9.35 मिनट तक रहेगी। ग्रहों के शुभ संयोग में भगवान नृसिंह की पूजा-अर्चना की जायेगी। आज के दिन श्री नृसिंह भगवान का व्रत-उपवास रख कर पूजा-अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय के साथ ही सुख-समृद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है।
नृसिंह भगवान की कैसे करें पूजा
ज्योतिषविद् पं. विमल जैन के मुताबिक इस दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहुर्त में अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात नृसिंह भगवान के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। लकड़ी की नवीन चौकी पर लाल या पीला रेशमी वस्त्र बिछा कर श्री नृसिंह भगवान की मूर्ति को स्थापित कर उनका शृंगार करके मध्याह्न काल में पूजा-अर्चना करने का विधान है। कहीं-कहीं पर संध्या काल में भी भगवान नृसिंह की जयंती मनायी जाती है। नृसिंह भगवान को ऋतुफल, नैवेद्य, विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न आदि अर्पित करके धूप-दीप से पूजा अर्चना करनी चाहिए। नृसिंह भगवान के प्रतिष्ठित मंदिर में पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। इस दिन ब्राह्मणों को यथा शक्ति नूतन वस्त्र, स्वर्ण, गौ व तिल तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए।