- मूर्ख बनने के लिए खुद-बखुद लाखों की जुटती है भीड़
- पहली अप्रैल को होगा महामूर्ख मेला
राधेश्याम कमल
वाराणसी। यह क्या संभव है कि कोई मूर्ख बनने के लिए समारोह में शामिल हो जाये। लेकिन यह सिर्फ अड़भंगी बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी में ही संभव है जहां पर लोग भांग-बूटी छानने के बाद मूर्ख बनने को आतुर रहते हैं। काशी का प्रसिद्ध घोड़ा घाट जिसका नाम जनमानस शायद अब भूल चुका है। इस घोड़ा घाट को जनमानस अब डा. राजेन्द्र प्रसाद घाट के नाम से जानता है। इस घाट पर पिछले कई दशकों से शनिवार गोष्ठी के तहत महामूर्ख मेला का आयोजन होता चला आ रहा है। शनिवार गोष्ठी काशी के साहित्यकारों, साहित्यसेवियों व पत्रकारों तथा हास्य रसिकों का बौद्धिक मंच है।
प्रारम्भिक दौर में शनिवार गोष्ठी से न जाने कितने दिग्गज साहित्यकार व साहित्यसेवी तथा पत्रकार जुड़े थे। इनमें कई लोग तो अब शायद इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन अब भी जो लोग हैं वह इस आयोजन से लगातार जुड़े हैं। इनमें काशी की महान विभूति हास्य के व्यंग्यकार पं. सुदामा तिवारी सांड़ बनारसी का नाम अग्रणी है। महामूर्ख मेला के मंच पर जब सांड़ बनारसी का पदार्पण होता है तो दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण ही है कि सांड़ बनारसी कितने प्रख्यात हैं।

घंटों लोग लगाते रहते हैं ठहाका
महामूर्ख मेला में लाखों लोग खुद-बखुद मूर्ख बनने के लिए घाट की सीढ़ियों पर आकर बैठ जाते हैं। दर्शक घोड़ा घाट की सीढ़ियां पर बैठ कर घंटों ठहाका लगाते हुए इसका आनंद लेते हैं। एक ओर मंच पर देश भर से आये कवियों का कार्यक्रम चलता रहता है और लोग इसका खूब मजा उठाते हैं।
कई विशिष्टजन बन चुके हैं दूल्हा-दुल्हन
महामूर्ख मेला में अब तक न जाने कितने ही विशिष्ट जन दूल्हा-दुल्हन बन चुके हैं। इस महामूर्ख मेला में बेमेल विवाह भी होता है। इसमें पुरुष दूल्हन और महिला दुल्हन बनती हैं। इसके अलावा यहां पर धोबिया डांस भी होता है जिसमें उसी वेशभूषा में डांस भी चलता रहता है। कार्यक्रम की शुरुआत गदर्भ (गधा) ध्वनि से होता है। चीपो चीपो की आवाज से जब घाट गूंजने लगता है तो पूरा माहौल ठहाकों से गूंज उठता है। इसमें दूल्हा-दुल्ह बनने वालों में पीलू मोदी, महेन्द्र शाह, सुनील शास्त्री, पं. लोकपति त्रिपाठी, श्रीमती चन्द्रा त्रिपाठी, श्याम लाल यादव, शैल चतुर्वेदी, गोविंद अग्रवाल, डा. अनुराग टंडन, डा. शालिनी टंडन, लक्ष्मण दास, मनमोहन श्याम, मुकुंद लाल टंडन, कृपाशंकर एडवोकेट आदि कई विशिष्ट जनों के नाम जुड़े हैं।
55 साल पहले हुई शुरू थी शुरुआत

महामूर्ख मेला के संयोजक सुदामा तिवारी सांड़ बनारसी बताते हैं कि लगभग 55 साल पूर्व महामूर्ख मेले की शुरुआत हुई थी। इसकी शुरुआत बेढब बनारसी, मोहनलाल गुप्त भइयाजी बनारसी, माधव प्रसाद मिश्र (एम भारती), केदारनाथ गुप्त, धर्मशील चतुर्वेदी व सांड़ बनारसी ने की थी। इसकी बैठक रूद्रकाशिकेय, कमला प्रसाद अवस्थी के आवास पर हुआ करती थी। बाद में पं. करुणापति त्रिपाठी ने इसको बजड़े पर करने को कहा। वे बताते हैं कि यह आयोजन पहले चौक थाने के सामने भद्दोमल की कोठी पर हुआ करता था। बाद में भद्दोमल की कोठी की छत जब ध्वस्त हो गई तो यह आयोजन चौक थाना परिसर में होने लगा। बाद में यह आयोजन घोड़ा घाट (डा. राजेन्द्र प्रसाद घाट) पर होने लगा। तब से यह आयोदन यही पर लगातार चल रहा है। इसमें वरिष्ठ साहित्यकार मोहन लाल गुप्त भइयाजी बनारसी, काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर, शिवकुमार शास्त्री राजवैद्य, माधव प्रसाद मिश्र, पं. धर्मशील चतुर्वेदी, सांड़ बनारसी, केदारनाथ गुप्त, बसंत लाल यादव राजू आदि काफी लोग जुड़े।

काव्य साहित्यिक जगत का अविरल मेला
शनिवार गोष्ठी के सदस्य बसंत लाल यादव राजू पिछले दो दशकों से इससे जुड़े हैं। कहते हैं कि महामूर्ख मेला काव्य साहित्यिक जगत का अविरल मेला है जिसमें शुरुआत से लेकर अभी तक नामी गिरामी हास्य के धुरंधरों ने अपनी रचना प्रस्तुत कर सभी को गदगद कर दिया। काशीवासी ऐसे रचनाकारों के ऋणी हैं। महामूर्ख मेला इस सोच से आरंभ किया गया था कि आज हर कोई मूर्ख है। आप आज किसी भी विधा में है और उसमें पारंगत है लेकिन किसी भी विधा में नहीं हैं। ऐसा महामूर्ख मेला का मानना है। महामूर्ख मेला के संचालक दमदार बनारसी व अध्यक्ष जगदम्बा तुलस्यान का मानना है कि महामूर्ख मेला प्रख्यात हास्य व व्यंग्य रसिकों का बौद्धिक मंच है। यह मेला प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि व कथाकार स्व. परिपूर्णानंद की स्मृति में आयोजित है। यह मेला पहली अप्रैल को घोड़ा घाट पर आयोजित है।