वाराणसी। मंदिरों के शहर बनारस में कई ऐतिहासिक मंदिर हैं। काशी खंड में काशी के हजारों मंदिरों का वर्णन है। बुधवार से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र (Navratri 2023) में दुर्गा मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ेगा। वैसे तो काशी महादेव की प्रिय नगरी कही गई है, लेकिन महादेव की नगरी में उनकी शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा के भी मंदिर कम नहीं हैं। उन्हीं मंदिरों में से एक है, रामनगर स्थित ‘दुर्गा मंदिर’। जो अपने भीतर हजारों इतिहास दफन किए हुए है। यह मंदिर काशी का अत्यंत प्राचीन मंदिर है, जिसकी महिमा पूर्वांचल समेत यूपी के कई राज्यों में गाई जाती है।
अंग्रेजों के ज़माने से है यह मंदिर
इस मंदिर की स्थापना का समय विवादास्पद है। इसके संबंध में पुरात्तवेत्ताओं के विभिन्न मत हैं। परन्तु कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना भूतपूर्व काशीनरेश ने कराई थी। यह मंदिर काशी में रामनगर के निकट स्थित है। यह 6 बिस्वा जमीन में फैला है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इसका निर्माण ब्रिटिश शासन के समय काशी नरेश ने कराया था, इसलिए इसकी गिनती काशी नरेश के संपत्तियों में से एक में होती है।

कहानी
किवदंतियों के अनुसार, इस मंदिर की सजीवता की जांच करने को एक अंग्रेज अफसर ने इसके शीर्ष पर गोली चला दी थी। कुछ ही मिनट बाद इसके शीर्ष से खून निकलने लगा था। बाद में वह अफसर भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ।
नक्काशी है शानदार
इस मंदिर की नक्काशी शानदार है, यह इसे देखते ही पता लग जाता है। मंदिर की दीवारों पर बनी आकृतियाँ स्थापत्य कला का नमूना है। नवरात्री के दिनों में मंदिर के प्रांगण में पांव रखने तक की जगह नहीं होती।
एक ही पत्थर से हुआ है निर्माण

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके निर्माण में केवल एक ही तरह के पत्थर का प्रयोग किया गया है।
कुंड में स्नान करने से मिलता है मोक्ष
मंदिर के बाहर बहुत ही विशाल कुंड (तालाब) है। जिसे रामकुंड भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाते हैं तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ के कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार, इस कुंड का निर्माण भगवान श्री राम ने कराया था, इसलिए इसका नाम रामकुंड पड़ा। परन्तु इसका कोई लिखित प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं है।

दूर- दूर से आते हैं दर्शनार्थी
मंदिर की भव्यता ऐसी है कि यहां आने वाले को 1-2 किमी दूर से ही दिखाई पड़ती है। पूर्वांचल ही नहीं बल्कि यह मंदिर अपनी भव्यता व शानदार नक्काशी के लिए विश्व में प्रसिद्ध है।
स्थानीय लोग करते हैं देख-रेख
वैसे तो यह मंदिर राजकीय सम्पत्ति है। जिसकी देखभाल करना राजा व प्रशासन का काम है। किन्तु कुछ वर्षों पूर्व जब मन्दिर के समीप का कुण्ड सुख गया था, तब इसके जीर्णोद्धार के लिए स्थानीय समाजसेवी ही आगे आए थे। उन्होंने तपते हुए आषाढ़ के महीने में इस सूखे हुए कुंड में इसके लिए धरना प्रदर्शन किया था। जिसके बाद यह कुंड अपने अस्तित्व में वापस आया।