Tulsi: भारत में सरस्वती, भागीरथी जैसी देवनदियां धीरे-धीरे लुप्त होती गई लेकिन तुलसी आज भी देवी होकर वनस्पति के रूप में पृथ्वी पर विराजमान हैं। वैसे तो घरों में तुलसी की हमेशा पूजा की जाती है लेकिन कार्तिक मास में इनकी विशेष पूजा की जाती है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसीजी का विवाह भी होता है। घरों व अन्य जगहों पर विशेष आयोजन किये जाते हैं।
तुलसी एक ओर जहां धार्मिक महत्व से जुड़ी हुई है वहीं उनका कई और भी पक्ष है। तुलसी [Tulsi] भगवान विष्णु की प्रिया हैं। तुलसी को भगवान विष्णु अपने गले में हमेशा धारण किये रहते हैं। तुलसी को हमेशा पवित्र स्थिति में तोड़ना चाहिए। द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा तिथि को तुलसी कभी नहीं तोड़ना चाहिए। कहते हैं कि मात्र तुलसी के दर्शन से पाप तो कटते ही हैं साथ ही स्पर्श से शरीर पवित्र होता है। प्रमाण करने से रोग दूर होते हैं। इसको ग्रहण करने से शीत बाधा नष्ट होती है।
देश में श्यामा, रामा, कृष्णा, हरित व सुंगधित Tulsi
भारत में श्यामा, रामा, कृष्णा, हरित व सुगंधित तुलसी [Tulsi] की कई प्रजातियां पायी जाती है। तुलसी न केवल विष्णु पूजा के काम आती है बल्कि स्वयं उनकी पूजा की जाती है। वैष्णवजन अपने घर के पास इन्हें अवश्य लगाते हैं। प्रदोष काल में तुलसी की पूजा होती है। शालिग्राम की पूजा तुलसी के बिना हो ही नहीं सकती है।
प्रसिद्ध ज्योतिषी पं. कामेश्वर उपाध्याय के अनुसार, भगवान विष्णु को अर्पित किये जानेवाले नैवेद्यों में तुलसी दल [Tulsi] का पड़ना आवश्यक है। फूली हुई तुलसी की मंजरी विष्णु भगवान को अतिप्रिय होती है। अमृत जन्म होने के कारण इन्हें सभी पूजते हैं। तुलसी के पत्ते में रोग नाशक क्षमता रहती है। आयुर्वेद की दृष्टि से कफ व श्वांस रोग नष्ट होता है। नीचे गिरे हुए पत्तों को उठा कर उनकी पूजा करनी चाहिए। तुलसी के जड़ में तीर्थों का वास होता है। महिलाएं तुलसी विवाह करके अपने अक्षय सौभाग्य को इनसे मांगती हैं।