- गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के पौष मेला की तर्ज पर लगता है बांग्ला मेला
- बंगाल के साथ ही कई प्रांतों के लगाये जाते हैं 60 स्टॉल
- यहां खजूर गुड़, संदेश मिठाई के साथ ही कोलकाता की सभी चीजें मिलेगी
- बच्चों व महिलाओं की होगी विभिन्न प्रतियोगिताएं
- 23 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक चलेगा बांग्ला मेला
राधेश्याम कमल
काशी के बांग्ला मेला का संबंध कहीं न कहीं से गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में पौष मास में पौष मेला से जुड़ा हुआ है। शांति निकेतन के पौष मेला की तर्ज पर काशी में बंग समाज की ओर से त्रिदिवसीय बांग्ला मेला का आयोजन किया जाता है। काशी में यह मेला विगत तीन दशकों से लगातार चल रहा है। मेले में बंगाल के साथ ही विभिन्न प्रांतों के लगभग 60 स्टॉल लगाये जायेंगे जिसमें बंगाल की सारी चीजें यहां एक ही जगह पर मिलती हैं। यह भी एक सुखद संयोग ही है मेले में खजूर गुड़, खजूर गुड़ का पायस, ज्वेलरी आदि खान-पान से संबंधित सभी वस्तुएं मिलेगी। यही नहीं इस त्रिदिवसीय मेले में छोटे बच्चों के अलावा महिलाओं के मनोरंजन का भी पूरा ख्याल रखा जाता है। इस बार मेला बंगाली टोला इंटर कालेज में 23 से 25 दिसम्बर तीन दिनों तक चलेगा।
ये है उद्देश्य
पौष मास में जब फसल कट कर घर पर आती है उस खुशी में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती विश्वविद्यालय शांति निकेतन में पौष मेला की शुरूआत की थी। पौष मेला का उद्देश्य यह था कि शीतलहरी में जो फसल कट कर लायी गई है, उसको लेकर आंनद का उत्सव मनायें। उसी के अनुकरण में काशी में 1991 में बंगाली टोला इंटर कालेज में बंगीय समाज की ओर से बांग्ला मेला शुरू किया गया। इसके पीछे एक और मकसद था कि यहां पर बंगला संस्कृति के साथ ही बंगला खान-पान की भी लोगों को जानकारी मिले। यही वजह है कि बांग्ला मेले में बंगाल में मिलने वाली सभी वस्तुएं एक ही जगह पर सर्वसुलभ हो जाती है। इनमें खजूर गुड़, खजूर गुड़ का पायस, संदेश मिठाई, चिकेन टोस्ट, हैदराबाद की बिरयानी, बंगाल की ज्वेलरी, बंगाली साड़ियों के भी स्टॉल लगाये जाते हैं।

- अशोक कांति चक्रवर्ती, अध्यक्ष, बंगीय समाज वाराणसी ।
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य बताते हैं कि बनारस में हैं तो बनारस की संस्कृति से भी जुड़िये। मगर अपनी संस्कृति को भूल मत जाइये। यह प्रयास सिर्फ बांग्ला मेला से नहीं है। कई साल पहले शहर के आलोक पारिख ने टाउनहाल मैदान में सुर गंगा का आयोजन किया था। इसमें 15 दिनों तक प्रादेशिक मंच को भी दिया गया था। बांग्ला मेला हो या फिर सुर गंगा यह एक सांस्कृतिक आंदोलन है। काशी के बांग्ला मेला की शुरूआत गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पौष मास में शांति निकेतन में किया था। ठंड में जब फसलें काट कर लायी जाती हैं तब इसी खुशी में पौष मेला लगाया जाता है। उसी तर्ज पर काशी में भी बांग्ला मेला का आयोजन आज से 30 साल पहले किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य है बंगाल की संस्कृति व खान-पान से स्थानीय लोगों के साथ आदान प्रदान करना। मेले में बंगला के विशेष सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं।
23 दिसंबर से 25 दिसंबर चलेगा मेला
काशी के बंगाली टोला इंटर कालेज के प्रांगण में 1991 से बांग्ला मेला लग रहा है। पहले यह ऐग्लो बंगाली प्राइमरी स्कूल पांडेय हवेली में लगता था। लेकिन बाद में यह बंगाली टोला इंटर कालेज में लगने लगा। इस बार मेला 23 दिसम्बर से प्रारंभ होकर 25 दिसम्बर तक चलेगा। मेले में इस बार बंगाल, कोलकाता के अलावा अन्य शहरों से भी लगभग 60 स्टॉल लगाये जा रहे हैं। मेले में बच्चों के अलावा महिलाओं की भी विभिन्न प्रतियोगिताएं होती है। इसमें बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, म्यूजिकल चेयर, चित्रकला प्रतियोगिता, उलूक ध्वनि (शंख ध्वनि) आदि कार्यक्रम होते हैं। मेले का उद्घाटन बंगीय समाज के अध्यक्ष अशोक कांति चक्रवर्ती 23 को प्रात:काल दस बजे फीता काट कर करेंगे। मेला रोज सुबह दस से लेकर रात्रि दस बजे तक चलेगा। 25 दिसम्बर को कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव इसका समापन करेंगे। त्रिदिवसीय इस मेले में बंगाल के किताबों का भी स्टाल लगाया जायेगा। पंडाल कानू बाबू डेकोरेटर्स तथा लाइट गौतम इलेक्ट्रिक का है। इसमें काफी लोग जुड़े हुए हैं जिसमें प्रो. जगत कुमार राय, प्रा. विशेश्वर भट्टाचार्य, प्रो. अजय नारायण गंगोपाध्याय, अमिताभ भट्टाचार्य (वरिष्ठ पत्रकार), सुश्री अर्चना घोष, अर्चिता धर, आशीष दास, अतनु मुखर्जी, सोमा दत्ता, चन्द्रशेखर मुखर्जी चन्द्रशेखर मल्लिक, श्यामा प्रसाद, डा. बिट्टू लहरी समेत काफी लोग हैं।

- देवाशीष दास, सचिव, बंगीय समाज वाराणसी ।