धार्मिक नगरी वाराणसी (Varanasi) में कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है, के अवसर पर श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था। हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और घाटों पर भगवान विष्णु के जागरण का उत्सव मनाया। देवोत्थान एकादशी को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और सृष्टि का संचालन फिर से अपने हाथों में लेते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी होती है, जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि।
Varanasi: स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने रचाया तुलसी विवाह
देवोत्थान एकादशी के साथ तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाया जाता है। वाराणसी (Varanasi) के घाटों पर तुलसी विवाह का आयोजन धूमधाम से हुआ, जहां भक्तों ने विशेष पूजा-अर्चना की। घरों में भी तुलसी विवाह की पारंपरिक रीतियों के साथ आयोजन हुआ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति कन्या दान नहीं कर पाता है, वह तुलसी विवाह कर कन्या दान का पुण्य प्राप्त कर सकता है। तुलसी जी को भगवान विष्णु की प्रिया माना जाता है, और उनका यह पावन मिलन देवोत्थान एकादशी को एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन बनाता है।
देव उठनी एकादशी पर श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर व्रत किया और मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए लंबी कतारों में खड़े होकर भगवान विष्णु और महादेव की आराधना की। श्रद्धालुओं की भीड़ और उत्साह से वाराणसी (Varanasi) के घाट गूंज उठे। इस पावन अवसर पर गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की उपस्थिति न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करती है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहरी जड़ों का भी प्रतीक है।
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