Varanasi: इस बार ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में एक बिल्कुल अलग और पर्यावरण-संवेदनशील अंदाज में मनाया गया। बकरीद पर बकरे की कुर्बानी की जगह अब ‘बकरा केक’ काटने का चलन तेजी से ट्रेंड में नजर आ रहा है। इस नए ट्रेंड ने न केवल त्योहार को cruelty-free (निर्दोष हिंसा रहित) बनाया है, बल्कि समाज में पशु प्रेम और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई है।
Varanasi: कई फ्लेवर के इस केक ने सभी को लुभाया
वाराणसी (Varanasi) के भैरवनाथ इलाके की प्रिंस बेकरी में इस बार बकरीद से पहले ही ‘बकरा केक’ की जबरदस्त डिमांड देखने को मिली। बेकरी के मालिक प्रिंस गुप्ता के अनुसार, इस साल 400 से 1000 रुपये तक के रेट में तैयार किए गए केक को चॉकलेट, वनीला, स्ट्रॉबेरी और फ्रूट फ्लेवर में ग्राहक खूब पसंद कर रहे हैं। बच्चों के बीच जहां चॉकलेट फ्लेवर का क्रेज ज्यादा है, वहीं युवा वर्ग बकरे की फोटो वाले कस्टमाइज्ड केक को तरजीह दे रहा है।
वहीं बेकरी के दूकान पर पहुंचने वाले ग्राहकों का भी मानना है कि यह पहल धार्मिक भावना के साथ-साथ मानवीयता और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी भी दर्शाती है। न किसी जानवर की कुर्बानी, न खून, न आंसू—बस मिठास और जश्न का अनोखा संगम।
समाज के प्रगतिशील तबके में इस पहल को एक सांस्कृतिक बदलाव और नई सोच की मिसाल माना जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी ‘बकरा केक’ को लेकर चर्चाएं तेज हैं और कई जगहों पर बेकरी शॉप्स (varanasi) में एडवांस ऑर्डर तक लिए जा रहे हैं। यह न केवल त्योहार को और ज्यादा समावेशी बना रहा है, बल्कि अगली पीढ़ी को भी करुणा और पर्यावरण संतुलन का पाठ पढ़ा रहा है।