Varanasi: दालमंडी का बूचड़खाना, जो सालों तक एक बदनाम पहचान के साथ जानी जाती थी। यह एक ऐसी जगह रही, जो पशुओं की चीखों से सुबह-शाम गूंजता था। तंग गलियों में स्थित यह बूचड़खाना आज अपनी तस्वीर बदल रहा। जहाँ कभी पशुओं के कटने की आवाजें, पानी की तरह बहता खून, बदबू व बीमारियों का डर और भिनभिनाती मच्छरों का राज होता था, वहां अब लोगों को जीवनदान मिलेगा। वाराणसी में बूचड़खाने की जगह विधायक निधि से अस्पताल को बनाया गया है। इसे बनाने में एक साल का समय लगा है।

Varanasi: विधायक ने किया लोकार्पण
शहर दक्षिणी के विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी ने गुरूवार को इसका लोकार्पण किया। लोकार्पण के पहले 21 वैदिक ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिक वाचन, वैदिक पाठ और सुंदरकांड का पाठ करके स्थान के शुद्धिकरण की विधियों को पूरा किया गया। इसके बाद विधायक नीलकंठ तिवारी (Varanasi) ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच फीता काटकर इस अस्पताल जिसका नाम ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ रखा गया है, उसका का शुभारंभ किया।

40 लाख की लागत से बनकर तैयार हुए प्राइमरी हेल्थ सेंटर का दक्षिणी विधायक ने सीएमओ के साथ अवलोकन किया। परिसर में डॉक्टरों और कर्मचारियों की तैनाती के लिए निर्देशित भी किया। वहीं स्लॉटर हाउस से लोगों को मुक्त होने की बधाई भी दी। काशी विश्वनाथ मंदिर से महज 200 मीटर दूर आदिविशेश्वर वार्ड में यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Varanasi) बनाया गया है।
2017 में आई बदलाव की सोच
इस अवसर पर विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी ने कहा कि वर्षों से इस परिसर में अवैध बूचड़खाना संचालित होता था, 2017 में गायों की रक्षा और तस्करी पर रोकने के लिए बूचड़खाने को बंद कराया गया। कोरोना में इस इलाके में पीएचसी की जरूरत महसूस हुई तो इसी परिसर में स्वास्थ केंद्र खोलने की पहल की। 1300 स्क्वायर फिट में निर्माण कार्य का शिलान्यास किया और तय सीमा में निर्माण कार्य पूर्ण होने पर लोकार्पण किया।

35 लाख की लागत से बनने वाला ये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Varanasi) दालमंडी और आसपास के हजारों लोगों के लिए वरदान साबित होगा। यहाँ 4 कमरे और 2 ओपीडी होंगे, जिनमें 2 महिलाओं के लिए अलग से कमरे रहेंगे। यहाँ महिलाओं के प्रसव से लेकर अन्य बिमारियों का भी इलाज होगा जिसके चलते आस-पास के लोगों को कहीं दूर नहीं भटकना होगा।
गौरतलब है कि बदलाव की इस कहानी से एक बात साफ हो जाती है कि विकास तब सार्थक होता है, जब वह ज़मीन से जुड़कर लोगों के जीवन में सकारात्मक असर डाले। दालमंडी का यह उदाहरण न सिर्फ वाराणसी, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकता है। 2017 से पहले यहां ना जाने कितने पशुओं की चीखें सुनाई देती थी लेकिन अब यहां लोगों को जीवनदान और बच्चों की किलकारियां गूंजेगी। ये बदलाव सिर्फ एक इमारत का नहीं…ये मानसिकता का बदलाव है। जहां कभी गंदगी और खौफ का माहौल था, अब वहां उम्मीद, इलाज और इंसानियत की हवा बह रही है।