Varanasi: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद इस बार निर्जला एकादशी पर बाबा विश्वनाथ के दरबार में एक अनोखा और ऐतिहासिक जलाभिषेक होगा। कश्मीर और लद्दाख की चार प्रमुख नदियों—सिंधु, रावी, झेलम और चिनाब का जल बाबा को अर्पित किया जाएगा। इस अलौकिक आयोजन की शुरुआत एक भव्य ‘जलकलश शोभायात्रा’ से होगी, जिसमें 1008 महिलाएं सिर पर कलश लेकर बाबा के दरबार पहुंचेंगी।
यह आयोजन शिव बारात समिति (Varanasi) के तत्वावधान में 6 जून को संपन्न होगा। समिति के अनुसार, बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए प्रयागराज के महाकुंभ का जल भी एकत्र किया गया है। विशेष बात यह है कि यह पहली बार होगा जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की नदियों के जल से बाबा का अभिषेक होगा। इससे पहले देश के विभिन्न हिस्सों की नदियों का जल यहां लाकर अभिषेक किया जा चुका है।
पवित्र नदियों का जल पहुंचा Varanasi
सोमवार को ही सिंधु, रावी, झेलम और चिनाब का पवित्र जल काशी पहुंच चुका है। इसे विशेष अनुष्ठानों के तहत बाबा को अर्पित किया जाएगा। इस दौरान 1008 महिलाएं, सिर पर जलकलश लेकर, शोभायात्रा के रूप में दशाश्वमेध घाट से बाबा विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचेंगी और विधिवत जलाभिषेक करेंगी।
शिव बारात समिति (Varanasi) के संयोजक दिलीप सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोकमंगल की कामना करना है। उन्होंने बताया कि इस आयोजन के लिए लंबे समय से तैयारी चल रही थी, और अब वह शुभ घड़ी आ चुकी है जब बाबा को देश की सीमाओं पर बहने वाली इन पवित्र धाराओं का जल समर्पित किया जाएगा।
चारों नदियों का पौराणिक महत्व
धार्मिक दृष्टिकोण से सिंधु, रावी, झेलम और चिनाब का विशेष स्थान है। इनका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। विशेष रूप से सिंधु नदी का नाम ऋग्वेद में कई बार आया है। माना जाता है कि सिंधु का अस्तित्व गंगा से भी प्राचीन है। यह नदी चीन के अधीन तिब्बत क्षेत्र से निकलती है और भारत की सांस्कृतिक विरासत में इसका अहम योगदान है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा जहां मोक्षदायिनी कही गई है, वहीं सिंधु को सनातन संस्कृति की आधारशिला माना जाता है। झेलम, चिनाब और रावी भी अपने पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण पूजनीय हैं। इनका जल अब बाबा विश्वनाथ के चरणों में समर्पित होकर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनेगा।
इस अनूठे जलाभिषेक (Varanasi) के माध्यम से शिव बारात समिति न केवल धार्मिक आयोजन कर रही है, बल्कि यह आयोजन राष्ट्र की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक समरसता का संदेश भी दे रहा है। देश के सीमावर्ती क्षेत्रों से लाया गया यह जल यह संकेत देता है कि भारत के हर कोने की संस्कृति और आस्था एक धागे में बंधी हुई है—जिसके केंद्र में हैं बाबा विश्वनाथ।