Varanasi: मोक्ष, अर्पण और तर्पण की भूमि काशी, जहां देश-विदेश से लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करने आते हैं। इस बार एक विशेष श्रद्धा और संस्कार का उदाहरण पेश किया ऑस्ट्रेलियाई नागरिक मैथ्यू ने, जो अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने 7322 किलोमीटर की यात्रा तय कर वाराणसी पहुंचे। गंगा के पवित्र तट पर विधि-विधान से तर्पण करने के बाद मैथ्यू ने कहा, “अब हर साल मैं बनारस आऊंगा और पिता के श्राद्ध कर्म करूंगा।”
Varanasi: पिता की आत्मा की शांति के लिए किया तर्पण
मैथ्यू ने बताया कि उनके पिता हिंदू थे और उनकी माता क्रिश्चियन। पिता ने अपने जीवनकाल में ही इच्छा जताई थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार अग्नि संस्कार से हो। दुर्भाग्यवश, उनकी माता ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उस वक्त मैथ्यू बहुत छोटे थे। बड़े होने के बाद जब उन्होंने सनातन संस्कृति और परंपराओं (Varanasi) को समझा, तब महसूस किया कि उन्हें अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए। इसी भावना के साथ वे वाराणसी पहुंचे।

वाराणसी के तीर्थ पुरोहित पंडित बलराम मिश्र ने बताया कि मैथ्यू पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गंगा घाट पर पहुंचे और विधि-विधान से तर्पण किया। पूजा के दौरान उनके गाइड ने हर प्रक्रिया को अंग्रेजी में समझाया, जिससे मैथ्यू ने पूरे अनुष्ठान को आत्मसात किया।
मैथ्यू जैसे कई विदेशी श्रद्धालु वाराणसी (Varanasi) की दिव्यता और आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर यहां आते हैं। यह केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए एक संस्कारों और संस्कृति से जुड़ने का माध्यम बनता जा रहा है, जो भारतीय परंपराओं को आत्मसात करना चाहते हैं। काशी (Varanasi) की पावन धरा पर हुआ यह तर्पण न सिर्फ एक बेटे का अपने पिता के प्रति श्रद्धा-समर्पण है, बल्कि यह भी प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति और परंपराएं सीमाओं से परे जाकर दुनिया को आकर्षित कर रही हैं।
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