Vijaydashami 2024: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक महापर्व दशहरा इस साल 12 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जाएगा, और काशी में इसके लिए तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। बरेका में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन पुतलों को शमशाद और उनका परिवार बना रहा है, जो चार पीढ़ियों से दशहरे के पुतले तैयार करने की परंपरा को बनाए हुए हैं।
शमशाद और उनका परिवार हर साल दशहरा से पहले पुतलों के निर्माण में लग जाता है। इस बार वे पूर्वांचल का सबसे ऊंचा, 75 फीट का रावण का पुतला तैयार कर रहे हैं, साथ ही कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले भी बना रहे हैं। इस कार्य में उनके परिवार के 12 सदस्य, जिनमें उनके बेटे, भाई और महिलाएं शामिल हैं, दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।

शमशाद के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत उनके नाना ने की थी, और उनका परिवार आज भी इसे जीवित रखे हुए है। डेढ़ महीने पहले से ही वे इस काम में जुट जाते हैं, ताकि दशहरे के दिन रावण का पुतला पूरी तरह से तैयार हो सके।

Vijaydashami 2024: गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल
खास बात यह है कि शमशाद का परिवार वाराणसी के कई प्रमुख स्थानों पर जलाए जाने वाले रावण के पुतलों को तैयार करता है, जिनमें बीएलडब्ल्यू का रामलीला मैदान, रामनगर, लंका, मलदहिया और फुलवरिया जैसे स्थान शामिल हैं। शमशाद और उनके परिवार द्वारा बनाए गए ये पुतले दशहरे के उत्सव में काशी की गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाते हैं, जो यहां की सांस्कृतिक विविधता और समन्वय का प्रतीक हैं।