Bhagvan Jagannath:ओडिशा का पुरी धाम न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिक महिमा के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित भव्य श्री जगन्नाथ मंदिर हर साल करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। खासकर जब रथ यात्रा का पर्व आता है, तो पुरी नगर श्रद्धा, भक्ति और उत्साह में डूब जाता है।
इस पावन यात्रा में भगवान जगन्नाथ (Bhagvan Jagannath) अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अन्य देवमूर्तियों की तरह पूर्ण आकार की क्यों नहीं है? आखिर क्यों उनके हाथ-पैर अधूरे हैं और उनकी मूर्ति असामान्य रूप से गोल चेहरे और बड़ी आंखों वाली दिखाई देती है? इसके पीछे एक प्राचीन कथा जुड़ी है , आइये जानते है इसके बारे में..
राजा इंद्रद्युम्न और अधूरी मूर्ति की कथा
नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ (Bhagvan Jagannath) अपनी बड़ी आंखों से वे पूरे ब्रह्मांड को देखते हैं, सब कुछ और हर किसी को नियंत्रण में रखते हैं। लेकिन एक बात जो कई लोगों देखा कि भारतीय मंदिरों में पाई जाने वाली देवताओं की अन्य मूर्तियों की तुलना में यह मूर्ति अधूरी है। कहा जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उन्होंने संकल्प लिया कि वे भगवान के प्रत्यक्ष स्वरूप की एक दिव्य मूर्ति बनवाएंगे।
इसके लिए उन्होंने देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा को आमंत्रित किया। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वे मूर्ति निर्माण का कार्य तभी करेंगे जब कोई उनके काम में बाधा नहीं डालेगा और जब तक मूर्ति पूरी न हो जाए, कोई उन्हें देखेगा नहीं।
रानी की व्याकुलता से खुला दरवाजा
राजा और रानी ने शर्त स्वीकार कर ली। विश्वकर्मा ने कार्य आरंभ किया और कक्ष का द्वार बंद कर लिया। दिन बीतते गए और भीतर से कोई आहट न आने पर रानी को चिंता होने लगी। उन्होंने राजा से आग्रह किया कि वे द्वार खुलवाएं। राजा ने मना किया लेकिन रानी की व्याकुलता बढ़ती गई। अंततः रानी की जिज्ञासा ने विजय पाई और द्वार खोल दिया गया।
जैसे ही दरवाजा खुला, विश्वकर्मा अदृश्य हो गए और अधूरी मूर्तियां वहीं रह गईं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं—उनके हाथ-पैर अधूरे थे और चेहरों पर बड़ी-बड़ी आंखें थीं। राजा को यह बहुत खेद हुआ लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि यही स्वरूप अब से पूजा जाएगा और यही जगन्नाथ (Bhagvan Jagannath) का दिव्य रूप कहलाएगा।
पुरी के श्रद्धालुओं और वैष्णव परंपरा के अनुयायियों के लिए भगवान जगन्नाथ केवल देवता ही नहीं, परिवार के सदस्य हैं। वे भक्तों के लिए पुत्र, पिता, भाई, रक्षक और सखा सभी कुछ हैं। मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है, लेकिन रथ यात्रा के दौरान जाति, धर्म और देश की सीमाएं टूट जाती हैं। हर कोई भगवान के निकट आकर उनका दर्शन कर सकता है और उनकी कृपा का भागी बन सकता है। भगवान जगन्नाथ (Bhagvan Jagannath) की अधूरी मूर्ति आज भी प्रेम, भक्ति और श्रद्धा की पूर्णता का प्रतीक मानी जाती है।