क्या आपने कभी सोचा हैं कि गणेश भगवान तो हम सभी के हैं तो गणेश चतुर्थी का पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य में ही क्यों मनाया जाता हैं? दरअसल इसके पीछे अंग्रेज शासन के समय बाल गंगाधर तिलक के आंदोलन का कारण है ।उन्होंने अंग्रेज़ शासन के विरोद्ध लोगों को एकत्रित करने के लिए इसे एक सार्वजानिक उत्सव के रूप में आयोजित करने की प्रथा शुरू की थी। उसी के बाद से यह पर्व महाराष्ट्र राज्य का एक मुख्य पर्व बन गया।
दरअसल बाल गंगाधर तिलक भारतवर्ष पर अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध स्वराज आंदोलन चला रहे थे। कोई आंदोलन तभी शक्तिशाली बनता हैं जब उसे लोगों का समर्थन प्राप्त हो। लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए उन तक अपनी बात को पहुँचाना आवश्यक होता हैं ।उन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उनका एक स्थल पर एकत्रित करना भी आवश्यक होता हैं क्योंकि उस समय ना तो सोशल मीडिया था तथा ना ही टीवी इत्यादि।
इसलिये लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उनका किसी सार्वजानिक स्थल पर एकत्र कर नेतृत्व करना आवश्यक था ।इसलिये बाल गंगाधर तिलक ने सन 1893 के बाद से इसके लिए गणेश चतुर्थी के दिन को चुना ।उससे पहले तक यह केवल निजी रूप से घरों में ही मनाया जाता था जो कि एक दिन का उत्सव होता था। तब बाल गंगाधर तिलक ने इसे एक सार्वजानिक उत्सव के रूप में बदल दिया।
उसके बाद से यह पर्व महाराष्ट्र के सभी जिलों में फैल गया तथा सभी जातियों व धर्मों के लोग विघ्नहर्ता की पूजा करने के लिए एकत्रित होते ।तब से यह उत्सव एक दिन का ना होकर 10 दिनों के लिए हो गया जिसमें लोग पहले दिन भगवान गणेश की मिट्टी से बनी मूर्ति को अपने घरों में स्थापित करते थे।
फिर दस दिनों तक अपने घर में उनकी पूजा करना, उन्हें उनकी पसंद के आहारों का भोग लगाना इत्यादि सम्मिलित था ।अंतिम दिन अर्थात अनंत चतुर्दशी के दिन सभी लोग बड़ी धूमधाम से भगवान गणेश की प्रतिमा को नदी, सरोवर तक लेकर जाते हैं तथा उसमे विसर्जन कर देते हैं।
उसके बाद इस उत्सव की प्रसिद्धि दिन भर दिन बढ़ती ही गयी तथा यह महाराष्ट्र के हर जिले व मोहल्ले में बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा। यदि आप आज देखोगे तो आजकल इस त्यौहार की प्रसिद्धि दूसरे राज्यों में भी बढ़ती जा रही हैं तथा उन राज्यों में भी महाराष्ट्र की भांति यह पर्व मनाया जाने लगा है।
Anupama Dubey