Nati Imli Bharat Milap: संस्कृति और परंपराओं के शहर बनारस ने अपनी थाती को संजो कर रखा है। यही कारण है कि सात वार में नौ त्योहार मनाए जाते हैं। विजयादशमी के दूसरे दिन काशी ही नहीं पूरा देश राम और भरत के मिलन का साक्षी बनता है। काशी में 481 सालों से अनवरत भरत मिलाप (Nati Imli Bharat Milap) की परंपरा चली आ रही है। काशी में पिछले 481 वर्षों से अनवरत भरत मिलाप की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।



अद्भुत दृश्य का गवाह बनने के लिए उमड़ती है भीड़
भरत मिलाप (Nati Imli Bharat Milap) की इस परंपरा का इतिहास 481 साल पहले मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से जुड़ा हुआ है। नाटी इमली में जब यादव बंधु पांच टन वजनी पुष्पक विमान को अपने सिर पर उठाकर प्रस्थान करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे समय थम गया हो। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इस अद्भुत दृश्य का गवाह बनने के लिए उमड़ पड़ती है, जिससे जगह कम पड़ जाती है।



ऐतिहासिक है Nati Imli Bharat Milap
हालांकि इस पर्व का आयोजन शहर के कई स्थानों पर होता है, लेकिन चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित ऐतिहासिक नाटी इमली का भरत मिलाप देखने के लिए लाखों की भीड़ रविवार को भरत मिलाप मैदान में मौजूद रही।



भीड़ इतनी की तिल रखने की भी जगह नहीं
भरत मिलाप (Nati Imli Bharat Milap) मैदान पर श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी बढ़ गई कि तिल रखने की जगह नहीं बची। भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान लंका से रावण का वध करने के बाद पुष्पक विमान पर सवार होकर यहां पहुंचे। कुछ ही समय बाद अयोध्या से भरत और शत्रुघ्न भी आए और मिलाप के चबूतरे पर विराजमान हो गए।


अस्ताचलगामी सूर्य की किरणों के साथ हुआ मिलन
इस अवसर पर रामचरित मानस की चौपाइयों का पाठ शुरू हुआ, और सूर्य की किरणें जैसे ही चबूतरे पर पहुंचीं, भगवान राम और लक्ष्मण रथ से उतरकर भरत और शत्रुघ्न की ओर दौड़े और उन्हें गले लगाया। इस तीन मिनट की लीला को देखकर पूरा मैदान “हर हर महादेव” और “सियावर रामचंद्र की जय” के जयघोष से गूंज उठा।


चित्रकूट रामलीला समिति के अध्यक्ष बाल मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि मेघा भगत ने भगवान श्रीराम को स्वप्न में दर्शन देकर यहां भरत मिलाप (Nati Imli Bharat Milap) कराने का निर्देश दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि यहां भगवान श्रीराम स्वयं उपस्थित होते हैं। इस दौरान मेघा भगत द्वारा स्थापित इस लीला में यादव बंधुओं ने परंपरा का पालन किया और भगवान का पुष्पक विमान भरत मिलाप स्थल से अयोध्या तक पहुंचाया। उनका गणवेश इस आयोजन की भव्यता को और भी बढ़ा रहा था।
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