समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code, UCC) एक ऐसा सिद्धांत है जो किसी देश में सभी नागरिकों के लिए एक ही मानक सेट कानूनों को संचालित करने की विचारधारा को दर्शाता है, जो व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, विरासत, और गोद लेन-देन को नियंत्रित करते हैं। इसका उद्देश्य धर्म या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को बदलकर एक सामान्य नागरिक संहिता को बनाना है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने का मुख्य उद्देश्य समानता, न्याय, और लिंग न्याय को बढ़ावा देना है, जिसके माध्यम से सभी नागरिकों को अपने धार्मिक विश्वास के अवलंबन के बिना भी एक ही कानूनी प्रणाली का पालन करना होगा। समर्थक यह दावा करते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) द्वारा लिंगात्मक भेदभाव को खत्म करने में मदद मिलेगी और सभी नागरिकों को समान अधिकार और विचारधारा प्रदान करेगी।
यह सिद्धांत भारतीय संविधान में भी उल्लेखित है, जो एक संघीय देश है जहां अलग-अलग धर्मों के अनुसार व्यक्तिगत कानून प्रणाली है। भारत में, संघीय शासन संरचना के कारण, यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के प्रस्ताव का पुनर्विचार किया गया है। इसे लागू करने के लिए कई सवाल उठे हैं और इसका विरोध भी व्यक्त हुआ है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने के फायदे कई हैं। पहले तो, यह सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय की गारंटी प्रदान करेगा। वर्तमान में, विवाह, तलाक, विरासत, और गोद लेन-देन के लिए व्यक्तिगत कानूनों में अंतर होता है, जिससे समाज में भेदभाव बढ़ता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) द्वारा, ये सभी मामले एक ही मानकों पर आधारित होंगे, जिससे सभी के लिए समान न्याय और अधिकार होंगे।
दूसरे, यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) आधारित कानूनी प्रणाली में महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करेगा। धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों में, महिलाओं के अधिकारों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध होते हैं और उन्हें बराबरता का पूरा लाभ नहीं मिलता है। एक समान नागरिक संहिता के माध्यम से, महिलाओं को समानता और न्याय के अधिकार की सुरक्षा मिलेगी।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के प्रतियोगितापूर्ण विरोध भी हैं। इसे विरोध करने वाले विचारधारा कहते हैं कि यह एक लाईबरल समाज का प्रयास है और यह धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है। वे यह दावा करते हैं कि हर धर्म अपने स्वतंत्रता के अधीन अपने व्यक्तिगत कानूनों को रखने का अधिकार रखता है।
Uniform Civil Code: भारत में समर्थक और विरोधी दोनों
भारत में, यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के प्रस्ताव के समर्थक और विरोधी दोनों अधिक हैं। सरकार और न्यायिक प्रणाली द्वारा इस मुद्दे का गहरा अध्ययन किया जा रहा है और जनता के बीच इस पर विचार-विमर्श हो रहा है। यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने का प्रस्ताव व्यक्तिगत, सामाजिक, और सांस्कृतिक बदलावों के साथ संबंधित है, और इसे ध्यान में रखते हुए सभी पक्षों के बीच समझौता करना आवश्यक होगा।
समान नागरिक संहिता के लागू होने से संघर्ष और विवाद तो संभव हैं, लेकिन यह भी सत्तारूढ़ी और सामाजिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इसके माध्यम से, हम समानता, न्याय, और विचारधारा को बढ़ावा दे सकते हैं और एक ऐसी समाज में जी सकते हैं जहां हर नागरिक को समान अधिकार और विश्वास मिलता है। तथापि, इस प्रक्रिया में सभी समुदायों के सहयोग और समझदारी की आवश्यकता होगी ताकि हम सामान्य नागरिक संहिता के माध्यम से समृद्ध और समरस्त समाज का निर्माण कर सकें।
Uniform Civil Code: भारत में लम्बा विवाद
भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर एक व्यापक चर्चा और विवाद चल रहा है। यूसीसी के प्रशंसक इसे सामानता, न्याय और महिला सशक्तिकरण के माध्यम से समाज में सुधार का एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं। वे दावा करते हैं कि व्यक्तिगत कानूनों के अलगाव के कारण सामाजिक असमानता, भेदभाव और अन्याय होता है। उनका मानना है कि यूसीसी के लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार, न्याय और सुरक्षा मिलेगी।
हालांकि, यूसीसी के खिलाफ भी विरोध व्यक्त हो रहा है। कुछ धार्मिक संगठन या समुदाय यह मानते हैं कि यह उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को हानि पहुंचाएगा और उनकी आत्मसम्मान को क्षति पहुंचाएगा। उनका दावा है कि हर धर्म को अपनी विशेषताओं, अदालतों और कानूनों को संभालने का अधिकार होना चाहिए। इसलिए, वे यूसीसी के खिलाफ यथार्थ और न्यायसंगत समर्थन करते हैं।
वर्तमान में, यूसीसी के लागू होने के लिए कोई संघीय कानून नहीं है। इसे लागू करने के लिए संविधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। इसमें विभिन्न राज्यों और समुदायों के बीच भी विवाद है। कुछ राज्यों में यूसीसी के प्रस्ताव को समर्थन किया जा रहा है, जबकि कुछ राज्यों में विरोध है। धार्मिक संगठन भी अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए कड़ी संघर्ष कर रहे हैं।
यूसीसी को लागू करने के मामले में न्यायिक प्रक्रिया भी चल रही है। सुप्रीम कोर्ट कई मामलों पर सुनवाई कर रहा है और इस मुद्दे को संविधानीय तालिका में उच्चतम अदालत ने रखा है। इस प्रक्रिया में, विभिन्न पक्षों के वकीलों ने यूसीसी के पक्ष और विपक्ष में अपने तर्क प्रस्तुत किए हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में चर्चा और विवाद चल रहे हैं और यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दा है। इसके प्रति लोगों के मत विभिन्न हैं और सरकार और न्यायिक प्रणाली इसे ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे को संविधानिक रूप से संघर्ष और विवाद से पारित करने का प्रयास कर रही हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रस्ताव की सफलता और व्यापक लागूता के लिए, एक सामाजिक समझौता की आवश्यकता होगी जिसमें सभी समुदायों को सम्मिलित किया जाए।
Uniform Civil Code: भाजपा ने कही यह बात
भाजपा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपनी नीतिगत स्थानकर्म में समर्थन किया है। वे यह कहते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान कानून होना चाहिए, जिससे समानता और न्याय का पालन हो सके। उनका मकसद है समाजिक समरसता और एकता को बढ़ावा देना।
भाजपा के नेताओं ने यह भी कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता देश के सामरिक समाधान, नागरिकीकरण और साम्प्रदायिक समझौतों को समर्थन करने के लिए है। इससे लोगों को एक समान अधिकार और जिम्मेदारी मिलेगी और समान रूप से उनके व्यवहार और अधिकारों को निर्धारित किया जा सकेगा।
समान नागरिक संहिता पर विपक्ष से अलग दिखने की कोशिश
आम आदमी पार्टी ने पिछले हफ्ते पटना में हुई विपक्ष की बैठक में हिस्सा तो लिया लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हुई। इसके अलावा वह दिल्ली में केंद्र के अध्यादेश के मुद्दे पर भी लगातार कांग्रेस की आलोचना करने की बात करती रही हैं। वहां भी आम आदमी पार्टी ने लगातार अलग एजेंडा पेश करने की कोशिश की। जोशी कहते हैं, ”यह नई पार्टी है।
इसने शुरू से ही खुद को वैकल्पिक राजनीति के तौर पर पेश किया है। गुजरात में भी लोग कांग्रेस और बीजेपी दोनों से नाराज थे, वहां भी वह उन लोगों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे थे जो किसी भी तरफ जाना नहीं चाहते। इसलिए यह पार्टी खुद को अलग दिखाने की कोशिश करती रहती है।”

समान नागरिक संहिता पर क्या है कांग्रेस का पक्ष? (What is the side of Congress’s Uniform Civil Code?)
समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि कांग्रेस इस मामले पर चुप नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि ‘विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और अगर वे (बीजेपी) समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को कानून के रूप में लाना चाहते हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है क्योंकि यह उनकी सरकार है।’
उन्होंने कहा, ”संसद में कानून लाने से पहले आप यह मुद्दा क्यों उठा रहे हैं और विपक्षी दल पर आरोप क्यों लगा रहे हैं? आप इस कानून को संसद में लाने के लिए स्वतंत्र हैं, कोई समस्या नहीं है और आपको किसने रोका है।” “आप यूसीसी (Uniform Civil Code) के नाम पर कांग्रेस और विपक्षी दलों को अनावश्यक रूप से दोषी नहीं ठहरा सकते। अगर हिम्मत है तो इसे कानून के रूप में संसद के पटल पर रखें, उसके बाद जनता के बीच इस पर बहस होगी।
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान को पूरी तरह गलत बताया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया, “समान नागरिक संहिता को सही ठहराने के लिए एक परिवार और एक राष्ट्र के बीच तुलना करना गलत है। मोटे तौर पर कहें तो यह तुलना सही लग सकती है लेकिन हकीकत बहुत अलग है।”
क्या कहा ओवेसी ने समान नागरिक संहिता पर
समान नागरिक संहिता पर पीएम नरेंद्र मोदी के बयान के बाद एआईएमआईएम नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार किया है। ओवैसी ने ट्वीट किया, ”नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक, समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) और पसमांदा मुसलमानों पर कुछ टिप्पणियां की हैं।

ऐसा लगता है कि मोदी जी ओबामा की सलाह को ठीक से समझ नहीं पाए।” उन्होंने आगे कहा, “मोदी जी, बताइए, क्या आप “हिंदू अविभाजित परिवार” (एचयूएफ) को खत्म कर देंगे? इससे देश को हर साल 3,64 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।”
समान नागरिक संहिता पर अन्य विपक्षी दलों ने भी विरोध जताया
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने भी कहा है कि मोदी सरकार नौकरी देने का वादा पूरा नहीं कर पाई, इसलिए यूसीसी (Uniform Civil Code) का मुद्दा उठा रही है। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र सरकार को यूसीसी के मुद्दे को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए और इसके कार्यान्वयन के परिणामों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
Highlights
समान नागरिक संहिता पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने क्या कहा?
पीएम मोदी द्वारा सभी समुदायों के लिए एक समान कानून की वकालत करने के कुछ घंटों बाद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूसीसी के खिलाफ दस्तावेज़ पर चर्चा की। समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इस बैठक में यूसीसी (Uniform Civil Code) पर आपत्ति के मसौदे पर चर्चा हुई लेकिन इस नियमित बैठक को पीएम मोदी के भाषण से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “भारत एक ऐसा देश है जहां कई धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं, इसलिए यूसीसी न केवल मुसलमानों, बल्कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, यहूदी, पारसी और अन्य छोटे अल्पसंख्यकों को भी प्रभावित करेगा।” उन्होंने कहा कि बोर्ड यूसीसी (Uniform Civil Code) पर अपनी आपत्ति जुलाई से पहले विधि आयोग के समक्ष दाखिल करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून 20 को मध्य प्रदेश के भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का जिक्र कर एक तरह से अगले साल होने वाले चुनावों का एजेंडा तय कर दिया है। देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि “एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चलेगा?”
पीएम मोदी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है। सुप्रीम कोर्ट अड़ जाता है। वह कहता है कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लाओ, लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें बाधा डाल रहे हैं। लेकिन बीजेपी इस भावना के साथ सबके साथ है। विकास काम हो रहा।”
पीएम के भाषण के बाद अलग-अलग पार्टियों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। विपक्ष की ज्यादातर पार्टियां पिछले हफ्ते पटना में एकजुट हुईं और इसका विरोध किया, लेकिन आम आदमी पार्टी इस मामले में अलग लाइन लेती नजर आई।
पार्टी ने कहा कि वह सैद्धांतिक रूप से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का समर्थन करती है, लेकिन यह भी कहा कि इसे सभी दलों के समर्थन से लागू किया जाना चाहिए।