Varanasi: काशी, जो बाबा विश्वनाथ की नगरी के रूप में विख्यात है, में बुधवार को माताओं ने अपनी संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत का पालन किया। गंगा और वरुणा नदियों में बाढ़ के बावजूद, व्रत धारण करने वाली महिलाओं ने तट पर भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना की और उनकी कथा का श्रवण किया।

विभिन्न पवित्र स्थलों पर पूजा-अर्चना
गंगा और वरुणा नदियों के किनारे के अलावा वाराणसी (Varanasi) के लक्ष्मीकुंड, बरेका सूर्य सरोवर, ईश्वरगंगी तालाब जैसे नगर के अन्य कुंडों और तालाबों पर भी स्थानीय महिलाओं ने भगवान जीमूतवाहन की पूजा कर कथा सुनी। इसके साथ ही लक्ष्मीकुंड पर आयोजित 16 दिवसीय सोरहियां मेले का भी समापन हुआ।
Varanasi: लक्ष्मीकुंड पर महालक्ष्मी के दर्शन
जिउतिया व्रत के संपन्न होने के बाद, लक्ष्मीकुंड स्थित महालक्ष्मी मंदिर में बड़ी संख्या में महिलाएं पूजा-अर्चना के लिए एकत्रित हुईं। मेले के अंतिम दिन, महालक्ष्मी मंदिर के साथ-साथ आस-पास के विष्णु, शनिदेव और काली मां के प्राचीन मंदिरों में भी भक्तों ने पूजा की। मेले को ध्यान में रखते हुए लक्ष्मीकुंड के आस-पास दुकानों का आयोजन किया गया था, और सुरक्षा के लिए पुलिस बल भी तैनात किया गया।

जितिया व्रत का धार्मिक महत्व
जितिया व्रत की पौराणिक कथा राजा जीमूतवाहन से जुड़ी है, जिन्होंने अपनी प्रजा के नागों की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान किया। इस कथा से प्रेरित होकर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए यह व्रत करती हैं। काशी जैसी पवित्र भूमि पर इस व्रत (Varanasi) का पालन करना इसे और अधिक फलदायी बनाता है, विशेष रूप से गंगा के तट पर इसकी महत्ता बढ़ जाती है। इस पावन स्थल पर देवी लक्ष्मी के दर्शन से व्रती महिलाओं को दैवीय आशीर्वाद मिलता है।
बताते चलें कि काशी में लक्ष्मीकुंड (Varanasi) के निकट स्थित महालक्ष्मी मंदिर अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। जितिया व्रत के अवसर पर यहां सैकड़ों महिलाएं देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होती हैं। लक्ष्मीकुंड का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व इसे और भी खास बनाता है। देवी लक्ष्मी के इस मंदिर में पूजा करने से माताओं को विश्वास होता है कि उनके परिवार और संतान की समृद्धि और सुरक्षा बनी रहेगी।
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