अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के मद्देनजर संसद में बहस चल रही है। प्रधानमंत्री ने भी इसपर गुरुवार को भाषण दिया। विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री के प्रति अविश्वास प्रस्ताव ला रही हैं। वहीं बीजेपी इसका पुरजोर तरीके से विरोध कर रही है। अब इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बहुत से लोग इस बारे में सुन रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बारे में पता ही नहीं है। कई लोग यह सोच रहे हैं कि यह आखिर क्या है जिसपर संसद में इतना बवाल मचा हुआ है। आइए जानते हैं इसके बारे में –
राजनीती में जब विपक्ष सत्ता पक्ष से किसी मुद्दे को लेकर नाराज होता है, तो लोकसभा सांसद नोटिस लेकर आता है। जिस प्रकार मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष में नाराजगी है, वह लगातार सदन में इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहे हैं। एक प्रकार से सरकार को घेरने के लिए अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया जाता है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया है और आज से इस पर बहस शुरू हो गई है।
बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पर चर्चा के लिए 50 लोकसभा सदस्यों या सासंदों का समर्थन आवश्यक होता है। गौरव गोगोई के नोटिस को 50 सांसदों का समर्थन मिला है। चर्चा के बाद इस पर वोटिंग की जाएगी।
कब लाया जाता है अविश्वास?
सरकार को लोकसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती के लिए इस अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) को लाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद-75 के अनुसार, सरकार यानी प्रधानमंत्री और उनका मंत्रीपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है। लोकसभा में जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं, इसलिए सरकार को इसका विश्वास प्राप्त होना जरूरी है।
ऐसे में अगर किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है, तो वह अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) ला सकती है। इसी के आधार पर लोकसभा के रूल 198(1) से 198(5) के तहत कहा गया है कि विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास का नोटिस लोकसभा स्पीकर को सौंप सकता है।

जब 1979 में गिर गई थी मोरारजी देसाई की सरकार
बता दें कि आजादी के बाद से अब तक 27 बार केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया गया, लेकिन ये सिर्फ एक बार ही पास हुआ है। जुलाई 1979 में पीएम मोरार जी देसाई ने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया था, जिस वजह से उनकी सरकार गिर गई। आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) 20 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पेश किया गया था, तब 325-126 के मार्जिन से मोदी सरकार जीती थी।
23 बार कांग्रेस पार्टी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया, लेकिन 10 साल पीएम रहे मनमोहन सिंह के खिलाफ एक बार भी अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) नहीं लाया गया। इसके अलावा, 2 बार जनता पार्टी जबकि 2 बार बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास लाया गया।
Highlights

अगर अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पास हो जाए, तब क्या होता है?
लोकसभा अध्यक्ष यह तय करते है कि प्रस्ताव को चर्चा और बहस के लिए स्वीकार किया जाए या नहीं। यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष चर्चा के लिए तारीख और समय तय करते है। अध्यक्ष प्रस्ताव पर चर्चा के लिए (लोकसभा नियमों के नियम 198 के उप-नियम (2) और (3) के तहत) समय दे सकते हैं। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पर बहस कैसे होती है?
अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस होती है। प्रस्ताव उस सदस्य द्वारा पेश किया जाएगा जिसने इसे पेश किया है, और सरकार तब प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देगी। इसके बाद विपक्षी दलों को प्रस्ताव पर बोलने का मौका मिलेगा।

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पर सबसे लंबी बहस
- अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पर सबसे लंबी बहस 24.34 घंटे हुई थी।
- इंदिरा गांधी के खिलाफ 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, सभी मौकों पर उनकी जीत हुई।
- लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस 24.34 घंटे हुई।
- 4 अविश्वास प्रस्ताव CPIM के नेता ज्योतिर्मय बसु ने पेश किया था।