Chhannulal Mishra: भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत को गहरा आघात पहुंचा, जब ठुमरी, दादरा, कजरी और चैती को अपनी गायकी से नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले पद्मविभूषण सम्मानित गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया. 90 वर्ष की आयु में गुरुवार की तड़के सुबह 4.15 बजे उन्होंने मिर्जापुर स्थित अपनी बेटी के घर पर अंतिम सांस ली।
गुरुवार की शाम उनका पार्थिव शरीर वाराणसी लाया गया, जहाँ अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में संगीत प्रेमी, शिष्य और शुभचिंतक पहुंचे। काशी के मणिकर्णिका घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान भारी पुलिस बल की भी मौजूदगी रही और जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर देकर उन्हें अंतिम विदाई दी। पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र को उनके पोते राहुल मिश्र ने मुखाग्नि दी।
पिछले सात महीनों से हालात बनी थी नाजुक
बताते चलें कि पिछले सात महीने से उनकी तबीयत लगातार नाजुक बनी हुई थी। हाल ही में उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में 17 दिन तक भर्ती रखा गया था, जहां उन्हें एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS), फेफड़ों में सूजन, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं का इलाज मिला। 27 सितंबर को डिस्चार्ज होने के बाद वे बेटी के पास मिर्जापुर लौट गए थे। वहीं उनकी तबीयत दोबारा बिगड़ी और अंततः उन्होंने जीवन यात्रा पूरी कर ली।
पंडित छन्नूलाल मिश्र (Chhannulal Mishra) के अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल, महापौर अशोक कुमार तिवारी, पूर्व मेयर राम गोपाल मोहले सहित कई जनप्रतिनिधि पहुंचे जिन्होंने पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी गहरी संवेदना प्रकट की।
गंगा–काशी और बनारस घराने की आत्मा थे मिश्रजी
पंडित छन्नूलाल मिश्र (Chhannulal Mishra) का जन्म 3 अगस्त 1936 को आजमगढ़ के हरिहरपुर गांव में हुआ था। यह गांव भारतीय संगीत की परंपरा का गढ़ माना जाता है। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद प्रसिद्ध तबलावादक थे। संगीत की शिक्षा उन्होंने अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से ली और नौ वर्ष की आयु में किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान से खयाल की तालीम पाई। बाद में ठाकुर जयदेव सिंह ने उन्हें और निखारा।
उनकी गायकी में काशी की मिट्टी की महक, गंगा की धार और बनारसी ठसक झलकती थी। “खेले मसाने में होली” जैसे उनके गीत आज भी बनारसी संस्कृति का जीवंत प्रतीक माने जाते हैं।
सम्मान और राजनीतिक जुड़ाव
पंडित छन्नूलाल मिश्र (Chhannulal Mishra) को 2010 में पद्मभूषण और बाद में पद्मविभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती से भी नवाजा। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे, जिससे उनका खास जुड़ाव हमेशा चर्चा में रहा।
Chhannulal Mishra: संगीत के लिए अंतिम संकल्प
अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी वे संगीत की चिंता करते रहे। उन्हें खुशी थी कि हरिहरपुर में संगीत महाविद्यालय की स्थापना हुई, जिससे नए कलाकारों को अवसर मिलेगा। वे चाहते थे कि बनारस घराने का गुरुकुल और मजबूत बने और आने वाली पीढ़ियां इस विरासत को आगे बढ़ाएं।
पंडित छन्नूलाल मिश्र (Chhannulal Mishra) के निधन से भारतीय संगीत जगत ने न केवल एक महान कलाकार खोया है, बल्कि बनारसी अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक भी हमेशा के लिए मौन हो गया। उनकी साधना और सुरों की गूंज भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर हमेशा जीवित रहेगी।