Humanoid Robot: चीन के बीजिंग की एक ठंडी सुबह, हजारों इंसानी धड़कनों के साथ एक अलग तरह की धड़कन भी दौड़ रही थी—मशीनों की। 21वीं सदी की तकनीक रोज़ कुछ नया कर दिखा रही है। मगर हाल ही में बीजिंग की सड़कों पर दिखे इस नज़ारे ने भविष्य की एक झलक दिखा दी। हजारों इंसानी धावकों के बीच, कुछ धावक ऐसे भी थे जिनकी सांसें नहीं चल रहीं थीं, जिनके दिल नहीं धड़क रहे थे, और फिर भी वे दौड़ रहे थे। ये थे ह्यूमनॉयड रोबोट्स—इंसानों जैसे दिखने, चलने और दौड़ने में सक्षम मशीनें, जो अब केवल विज्ञान-फंतासी का हिस्सा नहीं रहीं।
मैराथन में टेक्नोलॉजी की दस्तक
बीजिंग में आयोजित इस हाफ मैराथन रेस की शुरुआत तो एक आम रेस की तरह ही हुई, लेकिन भीड़ में मौजूद लोगों की नजरें तब ठहर गईं जब उन्होंने 21 रोबोट्स को इंसानों के साथ लाइन में खड़े देखा। ये नज़ारा किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसा लग रहा था, लेकिन यह पूरी तरह से हकीकत था।
बीजिंग इनोवेशन सेंटर ऑफ ह्यूम रोबोटिक्स द्वारा डेवलप किए गए इन रोबोट्स को एक खास मकसद के साथ रेस में शामिल किया गया था—परीक्षण करना कि क्या रोबोट इंसानों की तरह मैराथन (Humanoid Robot) जैसी लंबी और कठिन दौड़ में भाग ले सकते हैं। और जब इस आइडिया को आयोजकों के सामने रखा गया, तो उन्हें उत्सुकता तो हुई, लेकिन कुछ शर्तों के साथ अनुमति दी गई।
आयोजकों की सख्त शर्तें
रेस में शामिल होने के लिए आयोजकों ने एक सख्त गाइडलाइन जारी की: रोबोट्स (Humanoid Robot) में किसी तरह के चक्के नहीं होने चाहिए, वे दिखने में इंसानों जैसे हों और खुद से चलने या दौड़ने की क्षमता रखते हों। यानी कोई स्केटिंग या रोलिंग नहीं चलेगी—केवल असली ‘पैरों’ की दौड़। बीजिंग इनोवेशन सेंटर ने इन शर्तों को चुनौती की तरह लिया और अपने 21 बेहतरीन ह्यूमनॉयड्स को तैयार कर रेस के लिए भेजा।
हर रोबोट की अपनी पहचान
इस 21 किलोमीटर की हाफ मैराथन में भाग लेने वाले रोबोट्स का हर एक मॉडल अनोखा था। कोई छोटा था, कोई लम्बा। कुछ की लंबाई महज़ 114 सेंटीमीटर (करीब 3 फुट 9 इंच) थी, जबकि कुछ 175 सेंटीमीटर (करीब 5 फुट 9 इंच) तक के थे। इनकी डिजाइन, रंग और चाल में विविधता थी, जिससे हर रोबोट (Humanoid Robot) अपनी अलग पहचान बना रहा था। भीड़ में शामिल लोग न सिर्फ इन्हें दौड़ते देख रहे थे, बल्कि कई मोबाइल कैमरे इन्हें रिकॉर्ड करने में व्यस्त थे। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि मशीनें भी इस तरह से दौड़ सकती हैं।
मुकाबला नहीं, लेकिन मुकाबले से कम भी नहीं
रेस के आयोजकों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यह इंसानों और रोबोट्स (Humanoid Robot) के बीच कोई औपचारिक प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। इंसान केवल इंसानों से ही प्रतिस्पर्धा करेंगे। लेकिन फिर भी सभी की निगाहें इन रोबोट्स पर टिकी थीं कि वे कितना आगे जा पाते हैं।
नतीजा बेहद दिलचस्प रहा। जहां इंसानों की कैटेगरी में विजेता ने रेस 1 घंटे 2 मिनट में पूरी की, वहीं रोबोट्स की कैटेगरी में “तियानगोंग अल्ट्रा” नामक एक ह्यूमनॉयड ने 2 घंटे 40 मिनट में फिनिश लाइन पार की। यह प्रदर्शन तकनीकी दृष्टि से बेहद प्रभावशाली माना जा रहा है।
तकनीक की ताकत: बिना थकान, बिना
रेस पूरी होने के बाद इंसानी धावकों को जहां आराम की ज़रूरत पड़ी, वहीं रोबोट्स बिल्कुल शांत खड़े नज़र आए। कोई थकान नहीं, कोई पसीना नहीं। वेटिंग एरिया में रोबोट्स को देखकर कई इंसानी धावकों ने उनके साथ फोटो खिंचवाने का मौका भी नहीं छोड़ा। ये रोबोट्स (Humanoid Robot) दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए थे, जिन पर जमकर तालियाँ बजीं।
कंपनी का दावा: “हम दुनिया से आगे हैं”
बीजिंग इनोवेशन सेंटर के चीफ टेक्निकल ऑफिसर टैंग जियान ने दावा किया कि उनके द्वारा बनाए गए रोबोट्स आज पश्चिम में बने किसी भी ह्यूमनॉयड से अधिक एडवांस हैं, खासकर खेलों के लिहाज़ से। उनका कहना है कि इन रोबोट्स के लंबे पैर और खास एल्गॉरिदम उन्हें इंसानों के साथ दौड़ने में सक्षम बनाते हैं।
हालांकि परफेक्ट नहीं थे ये धावक रोबोट्स (Humanoid Robot) …. रेस के दौरान कुछ तकनीकी दिक्कतें भी सामने आईं। एक रोबोट शुरुआत में ही गिर पड़ा और कुछ देर जमीन पर पड़ा रहा। दूसरा रोबोट रेस के दौरान एक रेलिंग से टकरा गया। कई रोबोट्स की बैटरियों को तीन बार तक बदलना पड़ा।
इस इवेंट को जहां एक ओर टेक्नोलॉजी (Humanoid Robot) की बड़ी सफलता माना जा रहा है, वहीं कुछ लोग इसे एक संकेत के रूप में भी देख रहे हैं—कि जब रोबोट्स इंसानों के साथ मैराथन दौड़ने लगे हैं, तो वो दिन दूर नहीं जब वे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगियों में हमारी बराबरी या शायद हमसे आगे निकल जाएं।