Varanasi News: होली की मस्ती के बाद भी काशी में उल्लास का सिलसिला थमता नहीं, बल्कि बुढ़वा मंगल के साथ नए उत्साह का संचार होता है। 18 मार्च को अस्सी से राजघाट तक गंगा के बजड़ों पर संगीत की अनूठी महफिल सजेगी। फूलों से सजी नावों पर सुरों, गुलाल और खुशियों का संगम देखने को मिलेगा, जहां लोकगायक अपनी प्रस्तुतियों से शाम को मधुर बना देंगे।
सदियों पुरानी इस परंपरा को आज भी बनारस संजोकर रखे हुए है। 78 वर्षीय बच्चेलाल बताते हैं कि होली की खुमारी इसी दिन समाप्त होती है। यह अवसर बनारसी संस्कृति और पारंपरिक संगीत (Varanasi News) का उत्सव है, जहां घाटों पर सजी महफिलों में बिरहा, चैती, ठुमरी और बनारसी होरी की गूंज सुनाई देती है।
Varanasi News: विदेशी सैलानी भी होते हैं शामिल
दशाश्वमेध से अस्सी घाट तक यह परंपरा बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। लोकगायक विष्णु यादव के अनुसार, इस दिन घाटों पर भारी भीड़ उमड़ती है, जिसमें स्थानीय लोगों (Varanasi News) के साथ-साथ विदेशी सैलानी भी शामिल होते हैं। सफेद पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोग कुल्हड़ में ठंडाई और बनारसी मिठाइयों का आनंद लेते हैं।
बुढ़वा मंगल केवल संगीत का आयोजन नहीं, बल्कि खानपान, पारंपरिक परिधान और मेल-मिलाप का भी अवसर है। वर्षों से इस आयोजन का हिस्सा रहे मंगरू यादव बताते हैं कि इस दिन लोग दोस्तों और परिवार (Varanasi News) से मिलने जाते हैं। घरों में विशेष पकवान बनते हैं, और इसी दिन के बाद होली के रंगों को अगले वर्ष के लिए सहेज लिया जाता है।
इस साल कई इवेंट कंपनियां और संस्थाएं भी गंगा घाटों पर विशेष आयोजन कर रही हैं, जिससे यह पर्व और भव्य बनने वाला है। काशी का यह अनोखा जश्न, जहां संगीत, गंगा और रंगों का अद्भुत संगम होता है, हर साल श्रद्धालुओं और पर्यटकों (Varanasi News) को अविस्मरणीय यादों से भर देता है।
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