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Home धर्म कर्म

मकर संक्रांति: माघ मकरगत रवि जब होई, तीर्थ पतिहिं आव सब कोई

by Abhishek Seth
January 10, 2023
in धर्म कर्म
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मकर संक्रांति: माघ मकरगत रवि जब होई, तीर्थ पतिहिं आव सब कोई
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  • इस दिन सूर्य शनि की राशि मकर राशि में प्रवेश करते हैं और पिता पुत्र का मिलन होता है
  • नदियों में गंगा स्नान व दान पुण्य का होता है विशेष महत्व
  • गंगा सागर के ही स्थान पर भगीरथ के पुरखों को मिली थी मुक्ति

मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था।

वाराणसी। आचार्य वेद प्रकाश मिश्र कलाधर बताते हैं कि संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से अलगी राशि में संक्रमण (जाना)। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रांति की पौराणिक मान्यताएं

इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व

ऐसा माना जाता है कि विश्व की 90 फीसदी आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अत: मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है। सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छह माह पृथ्वी  के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छह माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है।

भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, इसलिए तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन कर, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवत: मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है, बल्कि एक खगोलीय घटना, वैश्विक भूगोल और विश्व कल्याण की भावना पर आधारित है और सम्पूर्ण मानवता (उत्तरी गोलार्ध की 90% आबादी) को आनंद देने वाला है।

उत्तरायण में देह त्यागने वाले ब्रह्मगति को प्राप्त होते हैं

शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। भगवद् गीता के अध्याय आठ में भगवान कृष्ण कहते हैं कि उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि और दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते  हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैया पर पड़े रहे थे। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।

गंगा सागर में भगीरथ ने अपने पुरखों को दिलायी थी मुक्ति

मान्यताओं के अनुसार ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उन्होंने भगवान श्रीहरी से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे।

सारे तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार

इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलत: सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया, इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।

इस बार माघ में पड़ रहा मकर संक्रांति

माघ माह में मकर संक्रांति पड़ने की अपनी पौराणिक मान्यताएं हैं यह ना सिर्फ देश हित के लिए बेहतर माना जाता है बल्कि सभी राशियों पर भी शुभाशुभ फल देने वाला होता है।  ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश बताते हैं कि हर तीन साल बाद अधिकमास में ऐसी तिथियों को देखा जा सकता है। 

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